विंध्य धाम मां ‌के जयकारे से गूंजा

उपासकों को मनोवांछित फल देने वाली शक्ति स्वरूपा मां ¨वध्यवासिनी यहां विराजमान हैं। सृष्टि के प्रारंभ से प्रलय काल तक यह क्षेत्र कभी समाप्त नहीं होता। मान्यता है कि माता पार्वती ने इसी भूमि पर अन्न, जल त्यागकर शिव को पति रूप में पाने के लिए शाबर मंत्र का जाप किया था। पुराणों में इस क्षेत्र को शक्तिपीठ, सिद्धपीठ व मणिद्वीप से विभूषित किया गया है। देवी भागवत के अनुसार जहां ¨वध्य पर्वत व भगवती सुरसरि का संगम होता है वह स्थान मणिद्वीप है। ¨वध्याचल के शिवपुर रामगया घाट पर ¨वध्य पर्वत मां गंगा का पांव पखार रहा है। बड़ा ही अद्भुत ²श्य है। पराशक्ति होने की वजह से मां ¨वध्यवासिनी निर्गुण व सगुण रूपा हैं। पुराणों में ¨वध्य क्षेत्र को तपोभूमि माना गया है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार द्वापर युग में ब्रह्मा की प्रेरणा से योगमाया ने यशोदा के घर जन्म लेकर कंस के हाथों से उड़कर आकाश मार्ग द्वारा ¨वध्याचल में निवास किया। मानव जीवन से जुड़ी सभी विधाओं से परिपूर्ण यह क्षेत्र शक्तिपीठ मां ¨वध्यवासिनी एवं त्रिकोण के रूप में विकसित हुआ। नवरात्र भर शक्ति की उपासना के लिए बड़ी संख्या में साधक, उपासक पहाड़ियों, मंदिर छतों पर अनुष्ठान पूजा में लीन रहते हैं। आचार्य अखिलानंद शास्त्री ने कहा कि ¨वध्याचल के कण-कण में शक्ति का निवास है। यहां आने मात्र से सारी विघ्न बाधा दूर हो जाती है। मां काली, अष्टभुजा और मां तारा देवी मंदिर पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहां अनुष्ठान साधना करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। वर्ष भर कोई कष्ट परिवार में नहीं आता, तभी तो नवरात्र भर यहां अनुष्ठान पूजन होता रहता है।

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